LK Advani's Blog |
| गुजरात और बिहार के बारे में हर्षदायक समाचार Posted: 05 Dec 2010 01:33 AM PST काफी लम्बे अर्से के बाद 3 दिसम्बर, 2010 को मुझे टाइम्स ऑफ इंडिया के मुखपृष्ठ पर हर्षित कर देने वाला समाचार पढ़ने को मिला। समाचार का शीर्षक है ”एस.आई.टी. क्लीयरस मोदी ऑफ विलफुल्ली एलाऊइंग पोस्ट-गोधरा रायॅट्स-फाईन्ड्स नो सबसेंटशियल इवीडेंस” (एस.आई.टी. ने मोदी को, जानबूझकर कराए गए गोधरा पश्चात् के दंगों में क्लीन चीट दी-कोई ठोस सबूत नहीं मिले)।
साठ वर्षों के मेरे राजनीतिक जीवन में नरेन्द्र मोदी को छोड़ मुझे अपने किसी अन्य सहयोगी का स्मरण नहीं आता जिसके विरुध्द इतना लगातार, इतने समय तक और इतना विषैला प्रचार उनके विरोधियों ने चलाये रखा हो। विडम्बना देखिए कि जिस समयावधि में मोदी के विरुध्द यह निंदनीय अभियान अपने चरम पर था, उसी अवधि में गुजरात के मुख्यमंत्री को भरपूर प्रशंसा और गुजरात सरकार को राज्य के चहुंमुखी विकास तथा अच्छे और ईमानदार सुशासन के संदर्भ में देश में एक मॉडल बनाने के लिए देश तथा विदेशों से बधाईयां मिलती रहीं।
श्री मोदी के विरुध्द इस दुष्ट अभियान में शामिल लोगों का हमला एक आरोप पर आधारित था। अयोध्या से लौट रही रेलगाड़ी पर गोधरा में हुए नृशंस हमले जिनमें 58 कारसेवकों की जलकर मौत हो गई के पश्चात् गुजरात के कुछ भागों में भड़के दंगो में मोदी ने दंगाइयों को जानबूझकर खुली छुट दी।
27 अप्रैल, 2009 को सर्वोच्च न्यायालय में श्रीमती जाकिया जाफरी द्वारा दायर की गई याचिका में श्री मोदी के विरुध्द प्रथम दृष्टया रिपोर्ट (एफ.आई.आर.) दर्ज करने की मांग की गई। न्यायालय ने जाफरी की शिकायत पर जांच करने के लिए सीबीआई के पूर्व निदेशक आर.के.राघवन के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) गठित किया।
श्री मोदी के विरुध्द श्रीमती जाफरी के आरोप इस तरह हैं : ”राज्य के संवैधानिक निर्वाचित मुखिया जोकि बगैर जातीय, समुदाय और लिंग का भेदभाव किए सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों, जीवन और सम्पत्ति के अधिकारों के लिए जिम्मेदार हैं, वे ही संवैधानिक शासन और कानून के शासन को पलीता लगाने वाले अपराधिक षडयंत्र, कत्लेआम के दौरान गैर कानूनी और अवैधानिक व्यवहार को बढ़ावा देने तथा तत्पश्चात् प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से दंगों के आरोपियों और अपराध में शामिल लोगों को संरक्षण देने के आरोपी हैं।”
राघवन की टीम ने लगभग बीस महीने तक इन आरोपों की जांच की। जांच के दौरान एस.आई.टी. ने नरेन्द्र मोदी से व्यक्तिगत रुप से पूछताछ की और गत् सप्ताह के शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
द टाइम्स ऑफ इंडिया और अन्य समाचार पत्रों ने प्रकाशित किया है कि एस.आई.टी. को आरोपों की पुष्टि के संदर्भ में कोई साक्ष्य नहीं मिला और उसने गुजरात के मुख्यमंत्री को इससे मुक्त कर दिया है। समूचा देश सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी गई एस.आई.टी. की पूरी रिपोर्ट की व्याकुलता से प्रतीक्षा कर रहा है। ***
1977 के लोकसभाई चुनावों के नतीजे उन्नीस महीने के आपातकाल के परिप्रेक्ष्य में हुए थे, जिससे लोकतंत्र की फिर से वापसी पर देश ने राहत की सांस ली थी। उस समय हम जो चुनाव अभियान में शामिल थे, कांग्रेस पार्टी के विरुध्द मतदाताओं के गुस्से को आसानी से भांप सकते थे।
इसलिए जब मतगणना शुरु हुई और नतीजे घोषित हुए तो किसी को भी कांग्रेस पार्टी के हार जाने का आश्चर्य नहीं हुआ। परन्तु हार की व्यापकता, विशेष रुप से उत्तर भारत में सभी के लिए हैरतअंगेज थी- कांग्रेस और विपक्ष के लिए भी। कांग्रेस पार्टी के लिए यह नतीजे सुन्न कर देने वाले थे। सिर्फ इसलिए नहीं कि कांग्रेस पार्टी केन्द्रीय सत्ता से पहली बाहर हुई थी अपितु इसलिए भी कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, और दिल्ली जैसे अनेक महत्वपूर्ण प्रदेशों में कांग्रेस लोक सभा की एक सीट भी नहीं जीत पाई।
इसी प्रकार पिछले सप्ताह जब नीतिश कुमार के नेतृत्व में जनता दल (युनाइटेड)- भारतीय जनता पार्टी गठबंधन बिहार विधानसभाई चुनावों में शानदार ढंग से विजयी हुआ तो किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ। लेकिन आश्चर्यजनक यह था कि एनडीए गठबंधन को जीत के बारे में सर्वाधिक आशावादी अनुमान यह था कि यह दो-तिहाई बहुमत (नई दिल्ली के एक वरिष्ठ संपादक शेखर गुप्ता जो चुनाव के अंतिम चरण से पूर्व राज्य के दौरे पर गई उच्चस्तरीय पत्रकार टीम के अंग थे ने मुझे यही बताया था) प्राप्त करेगा, परन्तु अंतिम परिणाम आते-आते नितीश कुमार - सुशील मोदी की टीम ने 243 में से 216 सीटे जीत लीं यानी कि विधानसभा की कुल संख्या का 8/9 वां!
मै मानता हूं कि पिछले पांच वर्षों में नीतिश कुमार के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन को सुशासन और विकास कार्यो के चलते पुन: जनादेश मिला। जनता दल (युनाइटेड) द्वारा लड़ी गई 141 में से 115 और भाजपा द्वारा लड़ी गई 102 मे से 91सीटें जीतने जैसी इस अप्रत्याशित विजय-का असली कारण पूर्व के 15 वर्षों का जंगलराज है। चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस प्रवक्ता इन 15 वर्षों के लिए लालू और राष्ट्रीय जनता दल को कोसते रहे परन्तु तथ्य यह है कि इस अवधि में काफी समय तक कांग्रेस भी राष्ट्रीय जनता दल की बराबर साझेदार थी। लोगों द्वारा राजद- कांग्रेस शासन और जद(यू) -भाजपा शासन के बीच वास्तविक तुलनात्मक अनुभव था जिसने एनडीए को यह शानदार प्रचंड विजय दिलाई।
लालकृष्ण आडवाणी नई दिल्ली 5 दिसम्बर, 2010
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| HEARTENING NEWS ABOUT GUJARAT AND BIHAR Posted: 04 Dec 2010 07:38 PM PST The most heartening news I have read in a long, long time is the front page report in the Times of India on December 3, 2010 bearing caption "S.I.T. CLEARS MODI OF WILFULLY ALLOWING POST-GODHRA RIOTS - Finds No Substantial Evidence"
In my sixty years of political life I have not known any colleague of mine so consistently, so sustainedly and so viciously maligned by opponents as Narendra Modi. Ironically, during the same period as this calumny campaign against Modi has been at its peak, the Gujarat C.M. has been a recipient of fulsome compliments and kudos from within the country as well as abroad for making Gujarat's a leading government in so far as the state's all-round development is concerned, and a kind of a role model for the country in so far as good and honest governance is concerned.
On April 27, 2009 the Supreme Court received a petition filed by Ms. Zakia Jafri seeking an FIR against Modi. The court appointed a Special Investigation Team headed by former CBI Director R.K.Raghavan to investigate Jafri's complaint.
Ms. Jafri's charge against Modi read: “The constitutionally elected head of the state and responsible for fundamental rights, right to life and property of all citizens regardless of caste, community and gender, is alleged to be architect of a criminal conspiracy to subvert constitutional governance and the rule of law; unleash unlawful and illegal practices during the mass carnage and thereafter protecting the accused who played direct as well as indirect role and abetted commission of the crime.”
The Raghavan team investigated the allegations for nearly twenty months. In the course of their investigations the SIT interrogated Narendra Modi personally, and early last week submitted its report to the apex court.
The Times of India and several other papers have reported that the SIT has found no evidence to substantiate the charge and has exonerated the Gujarat Chief Minister. The country is eagerly awaiting the full text of the SIT report to the Supreme Court. ***
The result of the Lok Sabha elections of 1977 held in the wake of the nineteen - month Emergency which brought democracy to the brink of extinction gave immense relief to the country. Those of us who were part of the poll campaign could easily sense the electorate's anger against the Congress Party.
So when the counting of votes took place and the outcome was announced, no one was surprised that the Congress Party lost the polls. But the dimensions of its defeat, particularly in North India, was a surprise for everyone - for both the Congress as well as the opposition. For the Congress Party, the result was a stunning shock. Not only because this was the first time since independence that the Congress Party had been ousted from the Central Government but also because in several important states like U.P., Bihar, Punjab, Haryana, and Delhi, the Congress had failed to get a single Lok Sabha seat.
L.K Advani New Delhi 5th Dec, 2010 |
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