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LK Advani's Blog

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विदेशों में रखे भारतीय धन पर सर्वोच्च न्यायालय कार्रवाई करे

Posted: 28 Dec 2010 08:25 PM PST

इण्डिया टूडे (3 जनवरी, 2010) के नवीनतम अंक में रविशंकर का एक दिलचस्प कार्टून प्रकाशित हुआ है जिसमें शीर्ष पर प्रमुखता से लिखा गया है : 176 रुपए और उसके पीछे ग्यारह शून्य। मुख्य कार्टून में दिखाया गया है कि डा. मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी घोषणा कर रहे हैं कि हम भ्रष्टाचार को शून्य बराबर भी बर्दाश्त नहीं करेंगे (We have zero tolerance for corruption)!” और उनके कुछ चापलूस घोषणा कर रहे हैं हम अनेक और शून्यों को बर्दाश्त कर सकते हैं(We can tolerate many more zeros…)A

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यदि पिछले अनेक महीनों से देश के प्रत्येक कोनों में एक शब्द अब सुनाई देता है या गूंज रहा है तो वह है भ्रष्टाचार, और इसका श्रेय तीनों संवैधानिक प्राधिकरणों-सर्वोच्च न्यायालय, संसद और नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सी.ए.जी.) को जाता है।

 

29 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति ए.के. गांगुली की पीठ ने सेंटर फॉर पीआईएलद्वारा दायर याचिका जिसमें नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की प्रारुप रिपोर्ट पर कार्रवाई करने की मांग की गई थी, की सुनवाई के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले, सीएजी की प्रारुप रिपोर्ट के मुताबिक इससे जनता के धन का 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ की जांच में केंद्र सरकार की ढिलाई के लिए लताड़ा गया। एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ने न्यायालय को बताया कि यह मात्र एक प्रारुप रिपोर्ट है।

 

नवम्बर में संसद में प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपए के घाटे का अनुमान लगाया गया, जोकि इण्डिया टूडे में प्रमुखता से उपरोक्त वर्णित कार्टून में दर्शाया गया है।

 

सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका कि उन्होंने नवम्बर, 2008 में प्रधानमंत्री को लिखकर संचार मंत्री ए.राजा के विरुध्द कार्रवाई करने की अनुमति मांगी थी को इस आधार पर अस्वीकृत कर दिया गया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो मामले की जांच कर रहा है, पर 18 नवम्बर को सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय और ने एक कदम आगे बढ़ा। मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री से इस संबंध में हलफनामा दायर करने को कहा।

 

सीएजी द्वारा बताए गए घोटाले साथ ही राष्ट्रमंडल खेलों में घोटाले पर सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीर रुख अपनाया और संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन दोनों घोटाले के साथ-साथ रक्षा भूमि संबंधी आदर्श हाउसिंग घोटाले को विभिन्न विपक्षी दलों द्वारा उठाने की कोशिश की गई। लेकिन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को कांग्रेस पार्टी ने नारेबाजी कर नहीं बोलने दिया।

 

तत्पश्चात् समूचा विपक्ष और यहां तक कि सरकार के कुछ सहयोगी भी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यदि इन तीनों घोटालों के संबंध में सरकार संयुक्त संसदीय समिति के गठन पर सहमत हो जाती है तो संसद में सामान्य कामकाज शुरु हो सकता है।

 

शीतकालीन सत्र के समाप्ति की ओर बढ़ते समय, यू.पी.ए. सरकार के एक वरिष्ठ मत्री, जो कांग्रेस पार्टी के नहीं हैं, ने मुझे बताया कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने उन्हें बताया कि वे संयुक्त संसदीय समिति के लिए तैयार हैं। इसकी घोषणा करने के लिए मंत्रियों की बैठक बुला ली गई थी लेकिन अंतिम क्षण पर रद्द कर दी गई।

 

संयुक्त संसदीय समिति नहीं बनाई गई; लेकिन ए. राजा को हटा दिया गया, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बदल दिए गए हैं। अभी तक लूट की बरामदगी नहीं हुई है लेकिन यदि कुछ कार्रवाई शुरु हुई है तो उसका मुख्य निर्धारक सर्वोच्च न्यायालय है।

 

मैं आशा करता हूं कि भ्रष्टाचार की समस्या के साथ जुड़े मामलों में सर्वोच्च न्यायालय एक बार फिर निर्णायक भूमिका निभाएगा। सर्वोच्च न्यायालय के सम्मुख, वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी और पांच अन्य प्रमुख नागरिक जिसमें सुभाष कश्यप और के.पी.एस. गिल सम्मिलित हैं, द्वारा दायर याचिका लम्बित है। याचिका का उद्देश्य विदेशों के टैक्स हेवन्स में ले जाए गए भारत के धन को वापस लाने हेतु सरकार को बाध्य करना है।

 

जब 2009 के लोकसभाई चुनावों में भाजपा ने इसे अपने चुनाव अभियान का मुद्दा बनाया था और इस विषय का अध्ययन करने के लिए एक कार्य दल (टास्क फोर्स) गठित किया था तो इसके एक सदस्य थे इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट, बंगलौर के वित्त और नियंत्रण के प्रोफेसर आर. वैद्यनाथन। उपरोक्त उल्लिखित याचिका के साथ ही प्रो. वैद्यनाथन ने एक सर्वोत्तम लेख लिखा है जिसकी शुरुआत इस स्वीकृति से होती है:

 

बराक ओबामा भी इस बारे में चिंतित हैं; मारकेल उनके बारे में क्रुध्द हैं; और सरकोज़ी उन्हें नियंत्रित करना चाहते हैं। लेकिन सर्वाधिक प्रभावित देशों से एक भारत के नेता उनके बारे में कुछ नहीं कह रहे या कुछ नहीं कर रहे। वे टेक्स हेवन्सया विदेश स्थित वित्तिय केंद्र है। जहां अनेक देशों से कर से बचाकर अवैध सम्पति जमा की गई है। ये टेक्स हेवन्सअब समाचारों में है जब से अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस इत्यादि जैसे विकसित देश उनके नागरिकों द्वारा लूटी गई अवैध सम्पति को वापस चाहते हैं।

 

लेख की समाप्ति निम्नलिखित पैराग्राफ से होती है:

 

हमें याद रहना चाहिए कि हमारा विगत् इतिहास बताता है कि हमारे नेतृत्व ने भारत को असफल किया और इस देश को लूटने तथा सदमा पहुंचाने में सहायता की। राजनीति/मीडिया/व्यवसायी/नौकरशाहों में हमारे नेतृत्व की चुप्पी हमारे सामूहिक अपराध के बारे में स्वंय बोलती है। राजनीति में कोई अपराधी नहींएक अच्छा अभियान है, लेकिन क्या हम ऐसे नेताओं को सहन कर सकते हैं जो पैसा विदेश ले गए हैं? विदेश ले जाया गया काला धन सभी अपराधों की गंगोत्री है। यह हमारी मातृभूमि के प्रति हमारे अविश्वास और धर्म के प्रति अवमानता को प्रदर्शित करती है। आइए, पहले इससे निपटें।

 

28 नवम्बर, 2010 के मेरे ब्लॉग में मैंने वर्ष 2010 में सामने आए अनेक घोटालों का संदर्भ देते हुए बताया था कि इन्हीं ने वास्तव में इसे संड़ाधभरे घोटालों का वर्ष बना दिया। मैंने यह भी उल्लेख किया था कि 2009 में यू.एन. ऑफिस ऑन ड्रग्स एण्ड क्राइम ने भ्रष्टाचार के विरुध्द एक समग्र कन्वेंशन पारित की है। भारत ने कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए हैं। अनुच्छेद 67 के तहत सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों के द्वारा इस कन्वेंशन को अनुमोदित किया जाना है। अनेक देशों में, ऐसे अंतराष्ट्रीय दस्तावेज जिन पर देश ने हस्ताक्षर किए हैं के अनुमोदन का अर्थ उसकी संसद द्वारा स्वीकृति होता है। भारत में इसके लिए केवल केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति की जरुरत है। 14 देश इसे पारित करने में असफल रहे हैं। सभी भारतीयों को यह जान कर दु:ख होगा कि भारत भी इन चौदह में से एक है। क्या प्रधानमंत्री देश को यह बताने की कृपा करेंगे कि क्यों भारत इसे पारित करने में असफल रहा है। पिछले 6 वर्षों में मंत्रिमंडल की केवल एकमात्र बैठक इसके लिए पर्याप्त होती।

****

और अंत में:

एम.जे. अकबर लिखते हैं:

यहां तक कि सर्वाधिक मंहगे ज्योतिषी भी कभी यह भविष्यवाणी नहीं कर सकते थे कि डा. मनमोहन सिंह एक मोबाइल फोन से जानलेवा रुप से घायल हो जाएंगे। 6 वर्षों में विपक्ष की गोलाबारी के बावजूद उनकी प्रतिष्ठा पर खरोंच भी नहीं आई, वह शांत और दृढ़ता से खड़े रहे। अचानक वह अपनों के शिकार हो गए। सरकार को इस नाजुक हद तक कमजोर करने वाले घोटाले का एक उल्लेखनीय पहलू यह है कि राजनीतिज्ञों, लॉबिस्टों, व्यवसायियों और पत्रकारों के जिन वार्तालापों ने कुछ सच रहस्योद्धाटित किया है वे एक ही तरफ हैं। वह उन लॉबिस्टों और पत्रकारों की कपटपूर्णता का विवरण है न कि अभियोग लगाने वाली निंदा, जो सत्ता में बैठे लोगों के मित्र थे।

 

लालकृष्ण आडवाणी

नई दिल्ली

27 दिसम्बर, 2010

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